Saturday, April 17, 2010

अथक प्रयास

आस्था है तभी तो
दुष्टि में अपनत्व का
दिखाना स्वाभाविक लगता है
नहीं तो क्यों अकारण
छुप छुप कर तुम देखोगी मुझको
महत्वपूर्ण है लोक लाज
मानता हूँ
मगर प्रेम छुपता नहीं यह भी तो
एक सत्य है
अथक प्रयास तुम्हारा शायद
इस नवजात प्रेम को छुपाने की
परन्तु मूक हवा
जो आती है मुझ तक
तुम्हारे स्पर्श को लेते हुए..
कह देती है तुम्हारे भावनाओं को
अविलम्ब एक छन में .....

2 comments:

  1. Its Very Good Thought.. Wastav me "Athak Prayash" Sarahniya hai... Keep-it-Up...

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  2. acchhi kavitaa hai....aur acchhi ban sakti hai....jaraa thaharkar likhen to....!!

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