Friday, January 29, 2010

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना-जितना आँचल था,
उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में,
ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया,
यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें,
हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो,
ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या,
चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया,
बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते,
जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में,
सादा सी जो बात मिली

3 comments:

  1. एक सुन्दर भाव "आँखें हंस दी दिल रोया ,यह अच्छी बरसात मिली "
    बधाई
    आशा

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  2. Bhaut avvha likhti hain aap...................
    aankhe bhar aaye kasam se

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