आस्था है तभी तो
दुष्टि में अपनत्व का
दिखाना स्वाभाविक लगता है
नहीं तो क्यों अकारण
छुप छुप कर तुम देखोगी मुझको
महत्वपूर्ण है लोक लाज
मानता हूँ
मगर प्रेम छुपता नहीं यह भी तो
एक सत्य है
अथक प्रयास तुम्हारा शायद
इस नवजात प्रेम को छुपाने की
परन्तु मूक हवा
जो आती है मुझ तक
तुम्हारे स्पर्श को लेते हुए..
कह देती है तुम्हारे भावनाओं को
अविलम्ब एक छन में .....
Saturday, April 17, 2010
Friday, January 29, 2010
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,
धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना-जितना आँचल था,
उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में,
ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया,
यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें,
हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो,
ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या,
चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया,
बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते,
जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में,
सादा सी जो बात मिली
धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना-जितना आँचल था,
उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में,
ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया,
यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें,
हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो,
ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या,
चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया,
बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते,
जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में,
सादा सी जो बात मिली
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